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The legends Of Mahabharata.!!!

 राधे-राधे प्रिय वाचकों में आपका स्वागत करता हूं हमारे इस नई पोस्ट में। में आपको आज यह बताने जा रहा हूं कि महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार और पांडवो की जीत क्यों हुई थी।



यह बात तो सभी जन ही जानते है की, शांतनु पुत्र देवव्रत ने अपने पिता के लिए आजीवन ब्रह्मचारी रहने  की भीष्म प्रतिज्ञा ली थी जिसके कारणवश उस महावीर को समूचे संसार में पितामह भीष्म के कारण जाना जाता है। उस महावीर को मेरा प्रणाम।



बादमें आगे चलकर शांतनु के वंश में विचित्रविर्य का जन्म हुआ और उनके ३ पुत्र हुए, क्रमशः धृतराष्ट्र,पांडु, विदुर हैं।लेकिन धृतराष्ट्र जन्मसे ही अंध थे इसी कारणवश पांडु को हस्तिनापुर का महाराज बनाया गया था। जब महाराज पांडु की मृत्यु हो जाती है तब धृतराष्ट्र को राजा बनाया जाता है, मगर उनसे यह वचन लिया जाता है कि वो तब तक ही राजा रहेंगे की जब तक महाराज पांडु के पुत्र शाशन करने योग्य नहीं हो जाते । जब महाराज पांडु के पुत्र शासन के योग्य हो जाएंगे तब उन्हें उनकी धरोहर उन्हें दे दी जाएगी।


जब महाराज पांडु के पुत्र शासन करने योग्य हो जाते है तब धृतराष्ट्र का जेष्ठ पुत्र दुर्योधन उन्हें उनका आधिकार देने से मना कर देता है ।  लेकीन बादमें धृतराष्ट्र पाण्डु पुत्रो को खांडवप्रस्थ नामक जंगलों से घिरा हुआ प्रदेश दे देता है। और अपने पुत्र को हस्तिनापुर नामक एक वैभव संपन्न राजधानी का नगा दे देता है। पांडव इस अन्याय को भी हसी खुशी सहन कर लेते है।


 बादमें दुर्योधन ने  शकुनि के द्वारा पांडु पुत्र इंद्रप्रस्थ के महाराज युधष्ठिर को चौसर का खेल खेलने के लिए आमंत्रित किया गया , यह शकुनि की चाल थी वो यह चाहते थे कि छल से महाराज युधिष्ठिर से उनका राज्य छीन सके और  अपने भांजे दुर्योधन को दे सके।


युधिष्ठिर चौसर का निमंत्रण स्वीकार करते है और अपने भाइयों के साथ चौसर खेलने बैठ जाते है।



युधिष्ठिर सबसे पहले तो अपने राज्य इंद्रप्रस्थ को हार गए और बादमें अपने भाइयों सहित अपने आपको हर गए। और उसके बादमें उन्होनें अपनी धर्मपत्नी द्रोपदी को दाव पर लगाया लेकीन वो अपनी पत्नी को भी चौसर में हार बैठे । उसके बाद जो घटना हुई उसके पहले तो ना कभी हुई थी और उसके बादमें ना कभी होनी चाहिए , वो घटना थी  " माता द्रोपदी " के वस्त्रहरण की , मगर जिसका भाई स्वयं  "वासुदेव श्रीकृष्ण" हो उसका कोई क्या बिगाड पाता , प्रभु ने अपने बहन कि रक्षा की और उसकी लाज बचाई थी।



बादमें युधिष्ठिर, भीम , अर्जुन ,नकुल ,सहदेव और द्रोपदी को १२ वर्ष का वनवास और १ वर्ष का अज्ञातवास सहना पड़ा।

जब उनका अज्ञातवास समाप्त हुआ तो पांडवो ने अपना राज्य दुर्योधन से वापस मांगा परन्तु दुर्योधन ने अहंकरवश पांडवो को सुई के नोक जितनी भूमि देने से भी मना कर दिया। 


और बादमें आजतक का सबसे भयंकर महाभारत का युद्ध हुआ था 

 



 एक तरफ थे कौरव और दूसरी तरफ थे पांडव । कौरवों के पास पांडवो से बड़ी सेना और महारथी थे । कौरवों के पास पितामह भीष्म , आचार्य द्रोण, कुलगुर कृप , द्रोणपुत्र अश्वत्थामा , दानवीर महादानी कर्ण, और अनेक रथी महारथी एवं १०० कौरव भाई थे। पांडवो के पास कौरवों से बड़ी सेना तो नहीं थी मगर उनके पास थे भगवान श्रीकृष्ण जो स्वयं इस संसार के स्वामी है वो जहा ,जिसके भी साथ होंगे वो हार ही नहीं सकता ।

बादम १८ दिनों का प्रचंड महायुद्ध हुए और उसमे भगवान श्रीकृष्ण की मदद से पांडवो की जीत और कौरवों की हार हुई क्यंकि जीत हमेशा सत्य की होती है और असत्य को हमेशा सत्य के सामने हारना पड़ता है।


                   जय श्रीकृष्ण ।। 

 

नोट:-इ- लेख में निहित किसी भी जानरी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'   


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