Hindiwale4u के इस नए ब्लॉग में आपका सादर प्रणाम के साथ स्वागत करता हु।
आज से हमारी ब्लॉग की नई श्रृंखला शुरू हो चुकी है जिसमे हम महान लोगो के जीवन को अपने बुद्धि से समझने का प्रयास करेंगे और महान व्यक्तियों का जीवन चरित्र समझने का प्रयास करेंगे। जिसकी शुरुआत में वासुदेव श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र से करना चाहूंगा। तो चलिए शुरू करते है ।
हमे महाभारत ,श्रीमद्भागवत, पुराणों आदि में गोविंद के जन्म का विस्तृत वर्णन मिलता है।
श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ, क्युकी आप सभी तो यह जानते ही है की ,कंस को आकाशवाणी के द्वारा यह मालूम चलता है की उसकी बहन देवकी का अष्टम पुत्र ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगा तो मथुरा नरेश कंस अपनी ही सही बहन उसके पति के साथ ही कारागार में डाल दिया गया, मधुसूदन के ६ बड़े भाई कंस के हाथो जन्म लेते ही मारे गए , ७ वे भाई बलराम और स्वयं श्रीकृष्ण जोकि मैया देवकी और वसुदेव के आठवें पुत्र थे उन्हें गोकुल के प्रमुख नंदबाबा और माता यशोदा ने जन्म के तुरंत बाद में गोद ले लिया।
तो सोचो की कैसा भाग्य था श्रीकृष्ण जिनके माता पिता विवाह के दिन से ही मथुरा के बंदी है , जिनके ६ भाई जन्म के तुरंत बाद ही मृत्यु को प्राप्त कर बैठे , और वो स्वयं अपने जन्म देने वाले माता पिता से दूर रहना पड़ा, गोकुल में भी कंस के द्वारा जिनको सताया गया, जिन्हे बचपन से ही असुरों द्वारा प्रताड़ित किया गया ,जिनको माता गांधारी द्वारा कुल का नाश हो जाने का आशीर्वाद स्वरूप श्राप मिला, जिनको महाभारत जैसे महाविनाश का कारण माना गया , जिन्होंने अपने बचपन के गांव और अपने बालसखा और सखियों को १०० वर्ष के लिए त्यागना पड़ा जिन्हे गोकुल,वृंदावन मथुरा छोड़ कर सुरक्षा कारणों के लिए द्वारिका में जाना पड़ा। मगर हम किसी भी चित्र में उनका मुखमंडल देखते है उनकी मन को हरने वाले मुस्कान।
क्या ही चरित्र था गिरिधर गोपाल का !
लीलाधर अपना बचपन गोकुल और वृंदावन में बिताने के बाद मथुरा जाकर कंस के अत्याचारों से अपने जन्मदात्री माता और पिता को मुक्त करते है और बाद में कंस के ही पिताश्री यानी की अपने नाना उग्रसेन जी को मथुरा का महाराज नियुक्त कर देते है और मथुरा में रहने वाले लोगो का उद्धार करते है, मगर यहां पर एक बात को समझना चाहिए की वो अगर चाहते तो खुद मथुरा के महाराज बन सकते थे मगर उन्होंने खुद राजा न बनके उग्रसेन को राजा नियुक्त कर देते है।
बादमे वो उज्जैनी ऋषि संदीपनी के यहां विद्यार्जन के लिए जाते है और सभी प्रकार की कलाओं को सिख लेते है,और आज कल जो मार्शल आर्ट नामक की जो कला है उसका जनक श्रीकृष्ण को ही माना जाता जोकि भारत वर्ष में कलारीपट्टू के नाम से जानी जाती है और बोधिधर्मन के द्वारा पूर्व एशिया और चीन में प्रसारित की गई है।
ऋषि संदीपनी से विद्या का दान लेकर वो गुरुदक्षिणा में उनके बिछड़े हुए पुत्र को वापस लाते है
और बाद में मथुरा आकर सुरक्षा के चलते महाराज उग्रसेन को द्वारिका का निर्माण करने का आग्रह करते है। और महाराज उग्रसेन के बाद द्वारिका के महाराज बनाए जाते है।
और जब हस्तिनापुर में धूर्त पाशे फेके जाते है तो युधिष्ठिर को दिए हुए वचन के कारण चाह कर भी कुछ कर नही पाते है, मगर जब द्रोपदी जब गोविंद को पुकारते है तो अपनी बहन की लाज रखने के लिए उन्हें आना ही पड़ता है।
और जब पांडव वनवास से वापस आते है तो कौरव उनको उनका अधिकार देने से मना कर देते है तब बात महाभारत तक आ पहुंच जाती है , तब सभी योद्धा दोनो में से किसी एक के साथ आ जाते है , मगर द्वारिकाधीश किसी के साथ युद्ध लड़ नही सकते थे तो दुर्योधन ने उनकी नारायणी सेना मांगी और अर्जुन ने निहत्थे वासुदेव को मांग लिया।
और बादमें श्रीकृष्ण महाभारत के महानायक बन गए वो चाहे संसार को या फिर अर्जुन को हो उन्होंने गीता का आजतक का सबसे श्रेष्ठ ज्ञान देना हो, एकलव्य को मुक्ति देना ही या पितामह भीष्म को शरशैया पे रखना हो या कर्ण के हाथो पांडवों को बचाना हो, इसीलिए वासुदेव श्रीकृष्ण ही महाभारत के महानायक बन गए।
हमे उनके चरित्र से संघर्ष करने की ही सर्वोच्च प्रेरणा मिलती है । ऐसे सर्वोत्तम व्यक्तिमत्व को चरणों में मेरा कोटि कोटि प्रणाम।
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Radhe Radhe
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