नमस्कार प्रिय मित्रो में आपका स्वागत करता hindiwale4u के इस नए ब्लॉग में।
आज हम इस ब्लॉग में यह जानने के एक साधारण प्रयास करते है की जीवन क्या है? जीवन जो कि इस प्रकृति ने हमें दिया सबसे बड़ा तौफा है, आजतक बड़े बड़े जीवविज्ञानिकों ने जीवन की उत्पति संबंधी कई सारी शोध प्रस्तुत किए है लेकिन, आजतक कोई भी यह सटीक जानकारी नहीं जुटा पाया है की इस संसार में जान सबसे पहले कैसे आई थी और हमारे जीवन का उद्देश क्या है।और वैज्ञानिक जानकारी हमारे मन की प्यास बुझाने में असमर्थ भी नजर आती है।
इसी लिए हमने इस प्रश्न का उत्तर आध्यात्मिक तरीके से हासिल करने का एक छोटा सा प्रयास किया है । अध्यात्म की दृष्टि से देखे तो सबसे पहला जीव ( आत्म/ परमात्मा) जो उत्पन्न हुआ है वो है श्रीहरि विष्णु भगवान लेकिन साइंस कहता है की जो जीव सबसे पहले उत्पन्न हुआ वो अमीबा है। लेकिन जबकि की हम जिवन को समझने का यत्न हम अध्यात्म की दृष्टि से कर रहे है तो हम विष्णु भगवान को ही आदि अनंत मानेंगे और उन्होंने परमपिता ब्रह्मा से इस ब्रह्मांड को रचना करने का कार्य दिया । और ब्रह्मा जीने अपने मानस पुत्रों के साथ मिलकर इस ब्रह्मांड की रचना की।
और बाद में विष्णु जी के कहने पर ही इस समूचे संसार में जीवन की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा जी ने इस ब्रह्मांड में एक ऐसा सिस्टम बनाया ही , समस्त जीव एक- दूसरे के ऊपर निर्भर रहने चाहिए ,इसे ही हम जीवनचक्रे और संसार चक्र कहते है यह बिलकुल न्यूटन के नियम के अनुरूप है।
बाद में कालचक्र को चार भागों में बाटा गया जो इस प्रकार है सतयुग ,त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग। अभी हम जिस आयाम या फिर आम भाषा में कहे तो हम अभी कलियुग में रह रहे है।
सतयुग में जीवन उद्देश यह था की सभी लोग बिना किसी निजी स्वार्थ के प्रभु की सेवा करे और अपना सभी समय ध्यान में लगाए ताकि उन सभी को भगवान के चरणों में स्थान मिल जाए। सतयुग में धर्म के चार पैर थे और धर्म १०० % था । अब बात आती है त्रेता युग की इस समय के लोगो का जीवन का उद्देश यह था की वो लोग प्रभु की तपश्चर्या , हवन ,यज्ञ करे और प्रभु को प्रसन्न करे। और द्वापरयुग में दान, तीर्थयात्रा ,भक्ति के माध्यम से प्रभु को पा सकते थे।
अब बात आती है की हमारे यानी जो की इस कलयुग में अवतरित जो प्राणी है उनके जीवन का क्या उद्देश है? दरअसल आज के समय में हम लोग प्रभु की साधना या फिर भागीरथ जैसा तप तो नही कर सकते है लेकिन हम सभी को यह तो मालूम है की हमे यह जीवन प्रभु को पाने के लिए ही मिला है, तो क्या फिर हम उस ईश्वर की कभी पा नही सकते ,,? जी बिलकुल पा सकते है उसके लिए हमे अपने जीवन का उद्देश मालूम करना पड़ेगा क्योंकि जो मनुष्य सैनिक है तो उसका यही कर्तव्य है की अपने काम को ही ईश्वर मान कर पूरे श्रद्धा के साथ हम अपना कर्तव्य कर्म करे ।
और बात अगर अध्यात्म की हो तो अध्यात्म ने भी यही बताया है की इस कलयुग में जरूरतमंदों की सहायता ही ही हमारे लिए सबसे बड़ी भक्ति होगी।क्युकी सतयुग और त्रेतायुग में कोई आज़ के जितना दुखी नहीं था सभी लोग खुश थे इसीलिए उन लोगो को ध्यान और तप करने में कोई समस्या नही जान पड़ती थी !
लेकिन आजके समय में तो सभी लोग धर्म से बहुत दूर आ पहुंचे है आज के समय में हमे इस व्यस्त जीवनशैली से धर्मकर्म करने समय ही नहीं मिलता ( लेकिन कुछ महात्मा इसी समय में भी अपना कर्तव्य कर्म बहुत अच्छे से कर रहे है यह एक अपवाद है) , लेकिन ऐसा नहीं है की आप इस काल में भगवत प्राप्ति कर ही नहीं सकते। आप सभी भी ईश्वर की भक्ति कर सकते, जोकि इस प्रकार है की, आप अपना कर्तव्य कर्म बिना किसी स्वार्थ के करो और उसे प्रभु को अर्पण करदो।
अगर आपको अपने जीवन का सार्थक बनाना है,अपने जीवन के लक्ष्य को पाना है तो उसका एकमात्र रास्ता यही है की आप अपना कर्तव्य कर्म करके उसे ईश्वर को अर्पण करदो
इसी के साथ हम आपसे bida लेते हैं लेकिन हम जल्द ही मिलेंगे Hindiwale४u ke agale लेख में।तब तक के लिए सादर प्रणाम।
1 Comments
Nice Bro,🌹😃
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